हाल में ही मैंने किसी समाचार पत्र में एक लेख पढ़ा था कि एक व्हेल मछली को बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत मेहनत की पर उनकी वह 5 दिन की मेहनत रंग ना ला सकी। उस बेजूबान जानवर की मौत का कारण प्लास्टिक था, करीब 20 पाउंड प्लास्टिक (Plastic) को उसके पेट से निकाला गया जिसे उसने गलती से खाना समझकर खा लिया था। प्लास्टिक के 80 बैग उसके पेट से पाये गये जिनकी वजह से उस व्हेल मछली को कई दिनों तक उलटी होती रही और अंत में कुछ ना खा पाने के कारण उसकी मौत हो गई।
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एक सवाल है सभी का
इस घटना ने एकबार फिर से पर्यावरण से प्यार करने वाले लोगों को सकते में डाल दिया है। उनके मन में यही सवाल है क्या हमारी आराम और सुविधा के लिए बनाई गई चीज़ें धीरे -धीरे हमारी अपनी धरती को खत्म कर रही हैं? क्या हम इतने अंधे हो चले हैं कि अपने आराम के लिए हम किसी की परवाह नहीं करते हैं?
प्लास्टिक का आविष्कार
जब प्लास्टिक का आविष्कार हुआ तो लोगों ने सोचा कि ये तो एक क्रांति है, जिस तरह पहिया संसार में आने का श्रेय लेता है वैसे ही प्लास्टिक को भी श्रेय देना चाहिए। इस आविष्कार ने तो रातों रात लोगों कि समस्या ही खत्म कर दी है। अब हर सामान जैसे की खाने की चीज़ , रोचमर्रा के सामान और बहुत कुछ हम इनमें रख कर आसानी से कहीं भी आ जा सकते हैं। प्लास्टिक में तो अब पानी को भी रख सकते हैं और ये टूटता और टपकता भी नहीं है। है ना कितना गजब!
पानी भी प्लास्टिक में कैद है!
आराम और सुविधा के लिए बनी ये प्लास्टिक आज हर जगह मिलती है, हर चीज़ में अब प्लास्टिक है। डिजिटल उपकरणों को छोड़ दे तो अब खाने की सभी वस्तु इन्ही में समाई रहती हैं, पीने का पानी जो कभी मिट्टी के बरतनों में प्यार से रखा जाता था आज प्लास्टिक की बोतलों में कैद करके बेचा जा रहा है। हमें प्लास्टिक की आदत इस कदर लग गई है कि अब हम इसके बिना जीने की कल्पना नही कर पाते हैं।
200 साल पहले चलिए
आँखे बंद कीजिए और भूत काल में जाइये ज्यादा नहीं करीब 200 साल पहले ही जब प्लास्टिक का नामो निशान नहीं था, हमारे भारत में हर जगह मिट्टी के बरतनों में पानी दिया जाता था, जो ज्यादा रहीस होता था तो वह तांबे के बरतनों का प्रयोग करता था। पत्तों से बनी पत्तलों में लोग खाना खाया करते थे। बड़े ही प्रेम भाव से बने चावल को लोग हाथों से खाते थे ना कि प्लास्टिक से बनी चम्मचों से। इस तरह के खान पान और प्यार के कारण ही पर्यावरण सुखमय रहता था। मिट्टी के बरतन वापिस माटी में मिल जाते हैं पर प्लास्टिक को तो माटी से ही घृणा है लाखों साल तक लड़ाई करके हमारा ही नुकसान करती है।
किताबों से लेकर सेमीनारों में हर किसी को प्लास्टिक के नुकसान बताये जाते हैं, पर शायद ही कोई ऐसा होगा जो इसके वास्तविक कारण को बतायेगा। सस्ते होने के कारण और कंपनियों को मुनाफा देनी वाली ये प्लास्टिक किसी को बंद करने में पसंद नहीं है, वरना प्लास्टिक तो जहर के समान है इसे कौन बेचेगा। प्लास्टिक इस कदर लोगों द्वारा इस्तेमाल होती है कि अब जानवरों को भी खत्म कर रही है।
– मधुमक्खियों का सफाया कर रहे हैं कागज के डिस्पोजेबल कप
जानवरों को तो छोड़ दो !
अब जानकर हैरान रह जायेंगे कि आपके द्वारा छोड़ा गया खाना जो कि प्लास्टिक के बैग में पड़ा होता है वह जानवर उसी बैग के साथ – साथ खा जाते हैं और इस तरह वे इस जहर को अपने अंदर ले लेते हैं जिससे उनकी इसी व्हेल मछली की तरह मौत हो जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्वभर में करीब 8 अरब किलो प्लास्टिक हर साल महासागरों में बहा दी जाती है।
इसके पीछे की सोच यही है कि बस सफाई घर तक करों रोड पर कचरा पड़ा है पर हमारा घर साफ रहना चाहिए पर ये समझ नहीं आता है कि घर की पहचान तो रोड से ही होती है।
हे पवित्र सागर हमने तुम्हें भी अपवित्र कर दिया
महासागरो में हर तरह का कचरा मिलता है, पानी की बोतलों से लेकर के खाने के पैकेट, प्लास्टिक के बैग, कप और बहुत कुछ, लोगो में इतना आलस है कि वे इस कचरे को एकजगह सही से फेंकते भी नहीं है जहां जगह मिली वहीं प्लास्टिक को फेंक कर चले जाते हैं। हद है, जिस तरह आपको कचरा पसंद नहीं है उसी तरह वहां रहने वाले जानवरों को भी कचरा पसंद नहीं होता है पर आपको क्या आपका का तो धरती पर राज चल रहा है जहां मन करेगा वहीं फेंक देंगे, ये जानवर तो पैदा ही कचरा खाने के लिए हुए हैं।
सोच बदलो
किसी ने सही ही कहा है कि सोच बदलो तो देश बदलेगा, काश लोग अपनी इस सोच को बदल पाते तो आज ये व्हेल मछली और उसकी तरह और भी जानवर जिनका इस धरती पर इंसानो के बराबर का ही हक है इस तरह ना मर रहे होते। आपका 91 फीसदी प्लास्टिक का कचरा कभी रिसाइकल नहीं होता है, ऐसे ही धरती में पड़ा रहकर धीरे धीरे आपको ही मार रहा है। पर आपको क्या आपको तो बस खाने पीने को मिल रहा है।
विकल्प खोजो
अब आते हैं बात पर जिस काम की मैं पहले बात कर रहा था। अगर आप प्लास्टिक को थोड़ा सा भी अपने जीवन में उपयोग में कमी करेंगे तो इसके बहुत लाभ होंगे। प्लास्टिक की जगह दूसरे विकल्पों की ओर जाइये। कमसे कम आप अपने स्तर तक को विकल्पों को खोज ही सकते हैं। पानी की प्लास्टिक की बोतलों की जगह आप मैटल की बोतल इस्तेमाल करें इससे वह ज्यादा चलेगी और स्वास्थ पर प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। दावतों और भोज पर आप पत्ते से बनी पत्तलों पर आ जायें। ये सभी विक्लप आपको ऐसा लगेंगे कि आप पीछे चले गये हैं पर ऐसा नहीं है, ये तबतक कारगर हैं जबतक वैज्ञानिक कोई और विक्लप ना खोज लें जो पर्यावरण का मित्र बनकर हमे सुविधा दे सके।