आज के जमाने के लोगों को जिस चीज़ की उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है, वो है उनकी नींद (Can You Go Without Sleep)। जी हाँ दोस्तों, आप लोगों ने बिलकुल सही सुना, हम लोग आज-कल इतने काम और जिंदगी में व्यस्त हो चुके हैं कf, नींद के बारे में कुछ सोच ही नहीं रहें हैं। ये ही वजह हे कि, आज के युग में “Insomnia” एक बहुत ही बड़ी बीमारी बन चुकी है। कुछ लोगों को तो, आज-कल बिलकुल भी नींद ही नहीं आती है। इसलिए आज के इंसानों में डिप्रेशन कि समस्या भी काफी ज्यादा बढ़-चढ़ कर पाई जा रहीं है।
आज का ये लेख नींद (Can You Go Without Sleep) और उससे जुड़े कुछ विषयों के ऊपर आधारित होगा। हम इसमें लोगों को नींद कब तक नींद नहीं आती, यानी बिना एक बार भी सोये कितने देर तक जाग सकते हैं? उसके बारे में जानेंगे। तो, मित्रों! मैं आप लोगों से अनुरोध करना चाहूँगा कि, लेख को आरंभ से अंत तक पढ़िएगा, ताकि ये विषय आपको अच्छे से समझ में आ जाएगा। इसके अलावा मैं आप लोगों को कई रोचक बातें भी बताऊंगा।
तो, चलिये अब लेख को शुरू करते हुए, असल विषय के ऊपर प्रकाश डालते हैं।
विषय - सूची
बिना सोए आप कब तक जाग सकते हैं? – Can You Go Without Sleep? :-
शीर्षक को देख कर ही आप अब तक समझ गए होंगे कि, हम लेख के इस भाग में आखिर क्या बातें करने वाले हैं! परंतु, शुरू करने से पहले मैं आप लोगों को एक बहुत ही रोचक बात बताना चाहता हूँ। साल 1963 में “Randy Gardner” नाम के एक व्यक्ति ने बिना सोए (Can You Go Without Sleep) एक विश्व रेकॉर्ड बना दिया था। उन्हों ने लगातार “11 दिन और 25 मिनटों” तक जाग कर सब को हैरान कर दिया था। हालांकि! इसके बाद 1986 में “Robert McDonald” नाम के एक व्यक्ति ने लगातार “18 दिन 22 घंटों” तक जागने का रेकॉर्ड बनाने का दावा किया था, परंतु इसकी कोई पुष्टि का कारण नहीं मिलता है।
गार्डनर के रेकॉर्ड को न बल्कि डॉक्टरों ने काफी बारीकी से मॉनिटर किया था, बल्कि इसकी पुष्टि भी कि थी। इसलिए गार्डनर के रेकॉर्ड को ही सबसे ज्यादा खास और सही माना जाता है। और एक हैरान कर देने वाली बात ये है कि, साल 1997 के बाद और नए लगातार जागते रहने वाले रेकॉर्ड को पुष्टीकरण मिलना बंद हो गया। क्योंकि इससे जुड़े खतरे इंसानों के लिए काफी ज्यादा घातक थे। अब सवाल उठता हैं कि, नींद के बिना लोगों का क्या होगा? कहने का अर्थ है कि, इंसानों के ऊपर “Sleep Deprivation” का क्या प्रभाव पड़ता है।
बीमारियाँ और नींद का न होना! :-
किसी भी इंसान के स्वास्थ के लिए नींद एक बहुत ही अहम चीज़ हैं। बिना नींद के इंसान को मधुमेह, डिप्रेशन, वजन बढ़ना और दिल कि बीमारी भी हो सकती है। वैज्ञानिकों के हिसाब से, इंसानों को हर 24 घंटों में औसतन 6 से 8 घंटों की नींद की जरूरत पड़ती है। 24 घंटों में अगर कोई नहीं सोता है, तो उसका दिमाग तभी उसे सोने के लिए सिग्नल भेजना शुरू कर देता है। और यहाँ उस व्यक्ति को सोने की जरूरत पड़ती है।
लगातार जागते रहने से क्या होगा? :-
वैज्ञानिकों के हिसाब से, अगर कोई व्यक्ति किसी भी कारण से, लगातार 24 घंटों से ज्यादा जागते हुए रह जाता हैं, तब उसका दिमाग स्वतः “Micro Sleep” मोड में चला जाता है। वैसे बता दूँ कि, इस मोड के दौरान इंसान को कई तरह के भ्रम (Hallucination) होने लगते हैं, जिसके ऊपर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं रहता है। इंसान जितनी भी कोशिश क्यों न करें, परंतु उसे अपनी नींद (Can You Go Without Sleep) किसी भी तरीके से पूरी करनी पड़ती ही हैं। इसलिए अगर कोई कहें कि, वो कई दिनों तक सोया नहीं है, तब उसकी बात बिलकुल भी सही नहीं हैं। क्योंकि ऐसा असंभव ही है।
ज़्यादातर लोगों के लिए लगातार 24 घंटों से अधिक देर तक जाग पाना लगभग असंभव ही हैं। मित्रों! एक अजीब बात ये भी हैं कि, लगातार जागते रहने से होने वाले साइड इफ़ेक्ट्स के बारे में वैज्ञानिक चाह कर भी सटीक रूप से पता नहीं लगा सकते हैं। क्योंकि किसी इंसान को बिना वजह के लंबे समय तक जगा कर रखना और उस पर प्रयोग करना खुद इंसानियत के खिलाफ है और इसके नतीजे उस इंसान के लिए काफी ज्यादा दर्दनाक हो सकते हैं।
किसी इंसान को सोने से रोकना एक प्रकार से मानसिक यातना के समान ही है। इसलिए प्रयोगों के जरिये इन्सानों के ऊपर लंबे समय तक नींद न लेने के साइड इफ़ेक्ट्स के बारे में पता लगाना तो संभव नहीं है, परंतु एक तरीके से लगातार जागते रहने के साइड इफ़ेक्ट्स के बारे में पता लगाया जा सकता है। एक खास तरह की बीमारी जिसे “fatal familial insomnia (FFI)” कहते हैं, उससे पीड़ित मरीजों से साइड इफ़ेक्ट्स के बारे में पता लगाया जा सकता है।
आखिर क्या है ये बीमारी?
FFI बीमारी से पीड़ित मरीजों के अंदर एक अजीब तरह के म्यूटेशन को देखने को मिलता है। ये म्यूटेशन मूलतः आनुवंशिक होता है और इसके चलते मरीज के दिमाग के अंदर एक विशेष तरह के प्रोटीन का जमा होना शुरू हो जाता है। बता दूँ कि, इस प्रोटीन के जमा होने के साथ-साथ मरीज को नींद (Can You Go Without Sleep) नहीं आती है और अगर आती भी है तो, वो ज्यादा देर तक सो नहीं पाता है। बीमारी की आखिरी अवस्था में मरीज की हालत इतनी खराब हो जाती है कि, उसके बारे में शब्दों में कह पाना मुश्किल है।
दिमाग के अंदर अब तक जो प्रोटीन जमा हो रहा होता है, वो आखिर में मरीज के दिमाग में मौजूद कोशिकाओं को खत्म कर देता है। जिससे मरीज की आखिर में मौत हो जाती है। इस बीमारी से पीड़ित मरीज कि जीवन आयु 1.5 वर्षों में ही शेष हो जाती है। 1989 में किए गए एक प्रयोग से ये पता चलता है कि, कोई भी जीव बिना सोये लगातार 11 से 32 दिनों के अंदर ही जिंदा रह सकता हैं। इसके बाद उसकी मृत्यु होना एक प्रकार से सुनिश्चित ही है।
खैर 2019 में किए गए और एक प्रयोग से ये पता चलता है कि, इन्सानों के अंदर 16 घंटों कि स्लीप डेप्रीवेशन तक हमारा दिमाग सही तरीके से काम करता है। इसके बाद हमारा दिमाग हमारे नियंत्रण से बाहर चला जाता है। 24 घंटों तक लगातार जागते रहने से हमारा “हैंड-आइ कोर्डिनेशन” भी काफी हद तक बिगड़ जाता है। ये क्रोनिक इनसोमनीया से पीड़ित मरीजों में काफी ज्यादा प्रभाव डालता है।
निष्कर्ष – Conclusion :-
नींद (Can You Go Without Sleep) पूरी न करने से इन्सानों में बोलने कि स्पष्टता, देख पाने की, विचार करने की, याद रखने की, सुनने की क्षमता काफी ज्यादा घट जाती है। इसके अलावा शरीर में अनियंत्रित कंपन भी महसूस होने लगता है। अगर कोई इंसान लगातार 36 घंटों तक जागते रहता है, तब उसके शरीर के अंदर हॉरमोन की संतुलन बिगड़ जाता है और उसका मेटाबोलिज़्म भी काफी गिर जाता है। लगातार 72 घंटों तक जागने से लोगों को कई अवास्तव चीज़ें दिखने लगती है और वो व्यक्ति धीरे-धीरे सोच-समझने की क्षमता खो बैठता है।
मित्रों! वैज्ञानिकों के हिसाब जो व्यक्ति नाइट शिफ्ट या लगातार काफी देर तक काम करते रहते हैं, उन्हें भी कई तरह के नींद से जुड़ी असुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है। इंसान के लिए प्राकृतिक रूप से रात को सोना और सुबह जागना सही रहता है और इसमें किसी भी तरह का बदलाव किसी भी व्यक्ति के लिए स्वस्थ नहीं है। इसके अलावा एक बात ये भी जान लेना चाहिए की, एक दिन में आप दूसरे दिनों में हुए नींद की कमी को पूरा नहीं कर सकते हैं।
वैज्ञानिकों के हिसाब से हर 1 घंटे की नींद की कमी पूरे 8 घंटों की नींद (सोने से) के द्वारा ही पूरा किया जा सकती हैं!
Source – www.livescience.com