चंद्रमा पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है। ये एक उपग्रह है जो कि पृथ्वी से आकार में बहुत छोटा है और यहां पर जीवन भी फिलहाल अंसभव है। पर 1969 में जब इंसानो ने इस पर कदम रखा तो कई ऐसे राज इस उपग्रह के बारे में हमे मिले जिनसे हमारा नजरिया ही बदल गया।
सबसे लेकर अबतक चांद पर बहुत से सवाल और शोध हो चुके हैं जो विज्ञान से जुड़े लोगों को बहुत प्रभावित करते हैं। उन्ही में से एक सावल है कि क्या हम चंद्रमा पर माचिस जला सकते हैं, और क्या उससे हम वहां पर आग को प्रकट कर पायेंगे? आइये जानते हैं इस सवाल के उत्तर को वैज्ञानिक नजरिये से…
ऐसे करती है माचिस काम
जब आप किसी माचिस की तीली को घिसते हैं तो बहुत कुछ होता है। एक माचिस की तीली कई सामग्रियों से मिल कर बना होता है, जिनमें पोटेशियम क्लोरेट, सल्फर और पाउडर ग्लास शामिल हैं। घसिने वाली सतह रेत, पाउडर ग्लास और लाल फास्फोरस (Red Phosphorus) से बना होता है। जब माचिस की तीली को उस सतह (घसिने वाली सतह जो माचिस के डब्बे पर होता है ) के साथ घसीटा जाता है, तो रेत और पाउडर ग्लास से घर्षण और गर्मी पैदा होती है, जो लाल फॉस्फोरस के कुछ हिस्से को सफेद फास्फोरस (White Phosphorus) में परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त होता है।
ऑक्सीडाइज़र जैसे पोटेशियम क्लोरेट को प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन मिलता है, जिससे माचिस की तीली आसानी से जलती है।
ऑक्सीजन, लंबे समय तक चलने वाली लौ का उत्पादन करने के लिए एंटीमनी ट्रिसुलफाइड के साथ कंबाइन (जुटती) है, ताकि उपयोगकर्ताओं के पास मोमबत्ती जलाने के लिए पर्याप्त समय हो।
पूरे सिर को पैराफिन मोम के साथ लेपित किया जाता है, जो लौ को नीचे आने में मदद करता है। जिलेटिन के लिए, माचिस की तीली में सब कुछ एक साथ रखने के लिए गोंद के रूप में उपयोग किया जाता है, और अतिरिक्त ईंधन भी प्रदान करता है।
ऑक्सीजन गैस का अभाव
अतः माचिस की तीली जलने के लिए मुख्य रूप से ऑक्सीजन गैस की ज़रुरत होती है, चूंकि चंद्रमा में गुरुत्वाकर्षण बहुत कम है, यह लगभग असंभव है कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से सतह पर कुछ गैस रुके। इसलिए अगर हम चन्द्रमा पर माचिस की तीली जायेंगे तो यह नहीं जलेगी।
साभार – Faiz Anwar