ग़मों का वो सागर जो छूटा न हमसे ,
आरज़ू का वो आँचल जो छोड़ा न हमने ,
चले साथ दोनों हमेशा ही यूँ ही ,
ज़िन्दगी से मोहब्बत वो छोड़ा न हमने ,
कई वक़्त आये सफ़र में सुहाने ,
लगे कुछ वो अपने अफ़साने पुराने ,
नींदों में वो सपने रहे चलते यूँ ही ,
अरमानों की आहट वो छोड़ी न हमने I
मिले चाहें कितने भी पल आंसुओं के ,
समझलो ये शुरुआत है खुशबुओं की ,
है उजली सुबह बनाई खुदा ने ,
ना छूटे कभी वो पहल मंजिलों की I
रखो राहें हरदम आसमानों के जैसी ,
समेटे जो सबको अपना समझके ,
बढ़ो एकता से इंसानियत के खातिर ,
पसंद है जो रब को , एक अमानत के जैसी I
प्यार भर दो ज़माने में तुम इस कदर की ,
मिट जायें ग़मों के ये गहरे से धब्बे ,
आरज़ू की हो दस्तक हमेशा ही मन में ,
मगर आरज़ू हो बिना इन ग़मों के I