Mother- Father Relationship – सनातन धर्म शास्त्रों में रिस्तों की बड़ी अहमियत दी गई है, एक बच्चा जब जन्म लेता है तभी से उसके इस संसार में भौतिक रिस्ते जुड़ जाते हैं। इन सभी रिस्तो में जो रिस्ता उसका सबसे नजदीक और अपना होता है वह माँ-बाप का होता है क्योंकि उन्ही ही कृपा से वह इस संसार में अपने जीवन को माया और बंधन से मुक्त करना आया है।
माँ-बाप उसके पहले गुरू होते हैं जिन्हें उसे ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जो आगे जाकर के उस बालक- बालिका को तेजस्वी, ओजस्वी और प्रतिभाशाली बना दे। पर अगर मा-बाप कि शिक्षा में जरा सी कमी जैसे अविद्या, अज्ञान, और कोई भी कुसंस्कार आ जाये तो ये बालक के जीवन के लिए बहुत विनाशकारी हो सकते हैं।
”माता शत्रुः पिता वैरी, येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये, हंसमध्ये बको यथा ॥”
वह माता-पिता शत्रु के सामान है, जो अपने संतान को विद्या अध्ययन नहीं कराते। क्योकि जो बालक/बालिका विद्या प्राप्त नहीं किये होते वे विद्वानों की सभा में उसी तरह अज्ञानी बन कर रहते है जैसे हंसो के मध्य बगुला।
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बेहतर शिक्षा दें
यह बात आज के परिवेश में चरितार्थ है कि यदि कोई माँ-बाप शासन के इतने प्रयास और सुविधाएँ देने के बावजूद यदि अपने पुत्र/पुत्री को विद्या न दे सके तो वास्तव में वे अपने संतान के लिए माँ-बाप कहलाने योग्य नहीं है बल्कि अपने संतान के सबसे बड़े शत्रु के समान है। आज का यह युग विज्ञान और तकनीक का युग है और ऐसे में यदि हम अपने बच्चों को सही शिक्षा नहीं दे पाएंगे तो वह समाज में कही भी प्रतिष्पर्धा करने योग्य नहीं रहेगा।
नैतिक शिक्षा का महत्व
विद्या का महत्त्व आज इसलिए भी अधिक बड़ जाता है क्योकि आज समाज में बेरोजगारी, जनसंख्या, अनाचार, भ्रस्टाचार, अनैतिकता, अराजकता आदि अनेक बुराइयाँ व्याप्त है, यदि बच्चे को व्यवहारिक और सैद्धांतिक ज्ञान के साथ साथ नैतिकता की शिक्षा भी दी जाए तो समाज के इन बुराइयो को दूर किया जा सकता है। जब बात नैतिक शिक्षा की होती है तो बच्चों को शास्त्रीय नैतिक शिक्षा जरूर देनी चाहिए, ध्यान रहे कि आपकी शिक्षा में उदाहरण जरूर हो क्योंकि बालक का मन उदाहरणों से जल्दी सीखता है।
गुरु का महत्व
विद्या का अर्थ केवल किसी विषय के ज्ञान तक सिमित न रहे बल्कि उसमे आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा का भी स्थान होना चाहिए, ताकि हम अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बना कर इस समाज को दे सके। आज के परिवेश में यह उक्ति केवल माँ-बाप तक सिमित नहीं है बल्कि इसमें गुरु का भी महत्त्व बड़ जाता है, यदि माँ-बाप अपने बच्चे को विद्यालय भेज रहे है और उन्हें अध्यापन कराने वाले गुरु से सही विषय ज्ञान नहीं मिल पा रहा है तो वह गुरु भी उस विद्यार्थी के लिए शत्रु की भाँति हैं।
– प्राण त्यागते समय बालि ने दी अपने पुत्र अंगद को ये शिक्षायें, जो बड़े काम की हैं
उचित शिक्षा, बेहतर भविष्य
अतः समस्त गुरुजनो को भी चाहिए क़ि वे अपने विद्यार्थियो को विद्यार्जन करने में सम्पूर्ण सहयोग प्रदान करें, और अपने विद्यार्थी को इस समाज के लिए एक आदर्श के रूप में स्थापित करे। अंत में समस्त माँ-बाप और गुरुजनो से निवेदन क़ि हमारे बच्चे हमारे साथ साथ इस समाज के भी है अतः अपने निजी और समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपने बच्चों को उचित विद्या प्राप्त करने का अवसर प्रदान करे ताकि वे बच्चे समाज पर बोझ न बने बल्कि उस समाज का नवनिर्माण कर उसे और अधिक विकशित और समृद्ध बना सके।