भले विज्ञान बहुत तरक्की कर रहा हो और नित नये राज खोल रहा हो पर भारत की भूमि पर हमेशा से ही विज्ञान पर शोध होता रहा है। यही कारण है कि जो ज्ञान आज वैज्ञानिक बताते हैं वे सभी हमें हमारे वेदों में मिलते हैं। विज्ञान को जितान भारतीय मुनियों ने समझा है शायद ही किसी ओर ने जाना हो। इसी बीच हम आपको बताने जा रहे हैं तुलसीदास जी के विज्ञान ज्ञान को कि किस प्रकार उन्होंने सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी को सटीकता से बताया था।
उन्हें हुए लगभग 600 साल हो गये हैं पर जब उनकी बात नासा और तमाम संगठन भी सही बताते हैं तो समुचे विश्व को हैरानी होती है, कि भारतीय बहुत वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे।
प्राचीन समय में ही गोस्वामी तुलसीदास ने बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। यह बात किसी आश्चर्य से कम नहीं है। आखिर कैसे तुलसीदास जी ने यह आकलन किया था। और वह भी पूरी तरह से सही है, तो क्या ऐसा संभव है कि विज्ञान ने धर्म की कॉपी की हो।
आइये इस रहस्य को जानते हैं हनुमान चालीसा के माध्यम से जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी थे।।
हनुमान चालीसा में एक दोहा है:
जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु. लील्यो ताहि मधुर फल जानू..
इस दोहे का सरल अर्थ यह है कि हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।
हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।
एक युग = 12000 वर्ष
एक सहस्त्र = 1000
एक योजन = 8 मील
युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील
एक मील = 1.6 किमी
96000000 x 1.6 = 153600000 किमी
इस गणित के आधार गोस्वामी तुलसीदास ने प्राचीन समय में ही बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। अब इसे आज का मानव कोई संयोग भी बोल सकता है या बोल दे कि यह तुक्का ही है।
लेकिन धर्म के जानकर बताते हैं कि हनुमान जी ने बचपन में ही यह दूरी तय कर ली थी, जब वह सूर्य को फल समझकर खाने के लिए पृथ्वी से ही सूर्य पर पहुँच गये थे।
अब इस सच को आप मानें या ना मानें यह तो आपके ऊपर निर्भर करता है लेकिन इससे यह तो सिद्ध हो जाता है कि आज भी धर्म, विज्ञान से कहीं आगे है। धर्म कहता है कि ब्रह्माण्ड में एक नहीं हजारों सूरज, चन्द्रमा हैं और तो औऱ अनगिनत ब्रह्माण की थ्योरी भी वैज्ञानिक रामायण से लेते हैं।
आसान भाषा में देखा जाये तो भारतीय संस्कृति जिसमें वेदों का समावेश है वह आधुनिक विज्ञान से बहुत ऊपर है और इसी कारण से आज भी वेद की कई रिचायें वैज्ञानिकों को समझ नहीं आती हैं।।