विश्व की सबसे प्राचीन सनातन परंपरा में दो समकक्ष व्यक्ति मिलने पर हाथ जोड़कर नमस्कार करने का रिवाज है। वहीं पश्चिमी परंपरा अनुसार मिलने पर हाथ मिलाने का रिवाज है।
मगर क्या कभी सोचा है कि दो समकक्ष व्यक्ति मिलने पर हाथ जोड़कर नमस्कार क्यों करते हैं? अगर नहीं, तो आज बताते हैं हाथ जोड़कर नमस्कार करने के वैज्ञानिक सिद्धांत को :-
हमारे शरीर में एक विद्युत ऊर्जा बहती रहती है। इस ऊर्जा के कारण ही शरीर का एक आभामण्डल बनता है, जो चित्रों में प्रतीत होने वाले देवताओं के सिर के पीछे प्रकाशचक्र जैसा होता है एवं शरीर के चाऱो तरफ भी सूक्ष्म रूप में उपस्थित रहता है।
आजकल इस आभामण्डल, शारीरिक ऊर्जा मंडल की फोटो किर्लियन फोटोग्राफी कला से ली जा सकती है। तो हर व्यक्ति के चारो तरह एक विशिष्ट ऊर्जा मंडल होता है। ये ऊर्जा मंडल उस व्यक्ति के विचारों, शारीरिक आंतरिक क्षमता, खान पान आदि के प्रभाव से निर्मित होता है।
यदि एक उच्च, श्रेष्ठ ऊर्जा से युक्त व्यक्ति किसी साधारण व्यक्ति से यदि आधुनिक पद्यति से हाथ मिलाता है तो उसकी ऊर्जा निम्न ऊर्जा वाले साधारण व्यक्ति के शरीर में जाने लगती है, जिससे उसकी उच्च ऊर्जा का नुकसान होता है।
साथ ही यदि एक अच्छी प्रवृति, सीधा सीधा, निश्छल मन वाला व्यक्ति, उच्च ऊर्जा वाले किसी दुष्ट व्यक्ति, अपराधी मानसिकता वाले व्यक्ति से हाथ मिलाते है तो उसकी उच्च दुष्ट नाकारत्मक ऊर्जा, अच्छे व्यक्ति के शरीर में जाकर उसके आभामण्डल को प्रभावित कर देती है, जिससे वो बीमार, परेशान हो सकता है।
ये बात आप स्पष्ट रूप से अनुभव कर सकते है क़ि एक साधारण सरल स्वभाव का व्यक्ति, उत्पाती मित्रों के समूह में फंस जाता है तो गुमसुम, डिप्रेशन जैसा चेहरा हो जाता है। ये सब हाथ मिलाने, एक दूसरे शरीर के स्पर्श के कारण होता है।
इस प्रभाव से बचाने के लिये प्राचीन वैज्ञानिक (ऋषियों) ने हाथ जोड़कर नमस्कार करने की परंपरा बनार्इ। हाथ जोड़कर नमस्कार करने से हमारे शरीर की ऊर्जा, हथेलियों के माध्यम से शार्ट सर्किट होकर हमारे शरीर में ही रह जाती है, जिससे हमारा आभामंडल सामने वाले के प्रभाव से मुक्त रहता है।
इस तरह हाथ जोड़कर नमस्कार करना एक वैज्ञानिक पद्यति है।
साथ ही जब रिश्ते में एक दुसरे के समकक्ष लोग मिलते थे, तो सिर पर कुछ वस्त्र, पगड़ी आदि डालकर गले (झुककर केवल गले, पूरा शरीर नहीं) मिलते थे। ये परम्परा हाथ जोड़कर नमस्कार करने का अधिक परिष्कृत रूप है।
शरीर में आँख, जीभ और गला, तुरंत ही ऊर्जा को ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं। जिन लोगो के गले में ठंडी हवा लग जाए तो उनको सर्दी हो जाती है। तो समकक्ष रिश्तेदार, मित्र आदि की आतंरिक भावनाएं, ऊर्जा मंडल सामान्य, समभाव होने से गले मिलते थे, जिससे प्रेम, अंतरंगता अधिक होती थी और प्रत्येक की शारीरिक ऊर्जा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता था।
इस दौरान सिर पर सूती कपड़ा, पगड़ी आदि धारण करके रखने से सिर का ऊर्जा मंडल, बाहरी ऊर्जा से इन्सुलेट हो जाता था, यानी निष्प्रभावित रहता था।