आज से लगभग ३००० वर्ष पहले गौतम बुद्ध हुए और उन्होने अपने तप से शांति,तप,अंहिसा,मोक्ष का नया मार्ग निकाला और संघ की स्थापना की ! संघ के निर्माण के पीछे उनका उद्देश्य था जो भी व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहता हो वह संघ में आकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है (आज की भाषा में Meditation ) !
ये भगवान बुद्ध के खुद के बोल है कि यह संघ सिर्फ ५०० वर्षो तक ईमानदार रहेगा,फिर इसमें बुराईया आनी शुरू हो जाऐगी और संघ की स्थापना के १००० वर्ष पूरे होते होते यह संघ पूरी तरह से धर्मभ्रष्ट हो जाएगा ! मोक्ष के प्यासे लोगो से उनका संघ बहुत प्रचलित हुआ लेकिन जीवन पर्यन्त कभी उन्होने नये धर्म की स्थापना नही की ।
भगवान बुद्ध के जीवन से कुच करने के लगभग 150 वर्ष बाद (अर्थात् मृत्यु के बाद लगभग 6 पीढिया निकल जाने के पश्चात् ) कुछ व्याभिचारी लोगो ने अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए एक राष्ट्रीय वार्ता के लिए मंच बनाया और उसमें जो लोग मौजुद थे उनकी वार्ता को लिखा गया और आज के समय में वही बौद्ध धर्म की धार्मिक पुस्तके है ! है ना बेवकुफी ! उस वार्ता में उपस्थित लोगो ने निर्णय लिया कि सनातन धर्म से बगावत करके नया बौद्ध धर्म बनाया जाए ! बस उसी समय से बौद्ध धर्म चल पड़ा।
समय चलता गया और जो लोग या उनके पुर्वज बुद्ध से प्रभावित थे ( जैसे मंगल पांडे की शहीदी के १५० वर्ष पश्चात् भी हम उनसे प्रभावित है ) वे आसानी से बौद्ध धर्म में आ गए ! कुछ समय पश्चात् दुर्भाग्य से सम्राट अशोक ने बौद्धियो से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म अपनाया और अपनी सर्वस्व प्रजा को धर्म परिवर्तन करने पर विवश किया !
आमतौर पर हमें झूठ पढाया जाता है कि अशोक ने हिंसा से दुखी होकर बौद्ध धर्म अपनाया जो बिल्कुल गलत है आज सैकड़ो प्रमाण है कि किस तरह अशोक ने तलवार के जोर पर देश को बौद्ध बनाया ! उदाहरणार्थ एक बार किसी जैन धर्मावलम्बी चित्रकार ने एक चित्र बनाया कि भगवान बुद्ध भगवान महावीर का आशीर्वाद ले रहे है ! इसे देखकर अशोक को इतना गुस्सा आया कि उसने 14,000 जैनियो के सिर धड़ से अलग करवा दिया ! ऐसे थे अहिंसावादी अशोक।
अशोक के कुचक्र से एक समय ऐसा आ गया कि भारत में गिनने मात्र हिंदू रह गये थे ,पूरा देश बौद्ध बन गया था। जब शंकराचार्य का जन्म हुआ तब भारत में सिर्फ 762 के करीब हिंदू बचे थे। जी हाँ सिर्फ 762 हिंदू ! शंकराचार्य एक अवतारी पुरूष थे जो लुप्त होते सनातन धर्म को फिर से बचाकर चले गए ।
जब सनातन धर्म इसी तरह लुप्त होने लगता है तब हर बार ऐसे पुरूष ईश्वरीय ईच्छा से जन्म लेते है। कलियुग चल रहा है इसलिए ऐसा हजारो बार लुप्त होगा और हजारो बार वापस स्थापित होगा ! यह समय का फेर है।
वापस मुद्दे पर आते है ! सर्वप्रथम तो जो लोग बौद्ध धर्म मे चले गए लेकिन उनकी सनातन धर्म में आस्था थी, को वापस सनातन धर्म में लाए ! फिर उन्होने पूरे भारत भ्रमण किया और पूरे भारत में शंख बजाते हुए चले ! कहते है कि जो लोग उनके शंख की ध्वनि सुन लेता था वो वापस सनातन धर्म में आ जाता था।
उसके बाद उन्होने धर्मद्रोही बौद्धि जो अपने कुविचार सबमें भरते थे उनको देश से खदेड़ना प्रारम्भ किया और सभी नास्तिकधर्मियो को देश से बाहर कर दिया ! इसलिए आज भी भारत में बौद्धि नगन्य है ! उसके बाद उन्होने वापस वेद धर्म की स्थापना की और शंकराचार्य पदवी की और चारो दिशाओ मे धर्म को फैलाने के लिए अलग अलग शंकराचार्य को नियुक्त किया जो आज तक चल रहा है।
तांत्रिक कर्मो के और मैली क्रियाओ के जानकार बौद्धि अपने वर्चस्व को खोने से बहुत क्षुब्ध हुए और अपने तांत्रिक कर्म भारतीयो पर करने शुरू किये जो आज तक जारी है। इस महान आत्मा ने धर्म को बचाने का कार्य पूर्ण किया और मात्र 32 वर्ष की उम्र में ईश्वरलोक चले गए।
साभार – हिन्दू स्रोत