Religion

क्या ब्रह्मांड में 84 लाख या उससे भी अधिक समानांतर पृथ्वियां हैं? जानें रहस्य

Parallel Earth concept In Hinduism

Parallel Earth concept In Hinduism –  ब्रह्मांड शब्द का अर्थ है ब्रह्म द्वारा बनाई गई सृष्टि, हमारे हिंदू शास्त्रो में ब्रह्म भगवान के उस रूप को कहा जाता है जो जगत, संसार और इस ब्रह्मांड का रचियता है। हमारे वेद और पुराणों में ब्रह्मांड के बहुत रहस्य मिलते हैं जो हमें हैरान कर देते हैं। हमने आजतक जो जाना है उन श्लोंको के पर्याय हम कुछ नहीं जानते हैं।

Parallel Earth concept In Hinduism 

जिस तरह हर साफ्टवेर का अलग कॊड होता है और वह कॊड केवल निश्चित प्रॊग्रामर ही लिख या पड़ सकता हैं, उसी तरह संस्कृत श्लोकों को केवल ब्रह्म ज्ञानी ही लिख या पड़ सकते हैं। इन ब्रह्म ज्ञानियों को ही ब्राह्मण कहा गया है जो अपने ज्ञान की गंगा से भारत की भूमी को पवित्र बनाते थे।

पुराने शरीर से नया शरीर 

आधुनिक विज्ञान भी हमारे वेदों और शास्त्रो के विज्ञान को मानने लगा है, जैसे हमारे शास्त्रो में कहा जाता है कि मनुष्य जब मरता है तो पुराने वस्त्र को त्याग कर नया वस्त्र पहनता है उसी प्रकार जीवात्म भी अपने पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर पाता है। इस बात को विज्ञान भी मानता है कि अणु-परमाणु अलग अलग रूप ले सकता है। विज्ञान चाहे कितना भी उन्नत हो चुका हो लेकिन कॊई आज तक यह नहीं जान पाया कि जीवियों के हृदय में ऊर्जा का स्रॊत क्या है।

84 लाख प्रजातियां 

पद्म पुराण में कहा गया है कि धरती पर 8.4 मिलियन (84 लाख)  भिन्न भिन्न प्रकार की प्रजातियां 6 विभागों में बंटी हुई है। जलज, स्थावर, कीड़े, पंछि, पशु और मानव यह 6 विभाग है। लेकिन क्या 8.4 मिलियन प्रजातिया केवल हमारी पृथ्वी पर ही है? क्या यह संभव है? व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है। आधुनिक विज्ञान के अनुसंधानों से यह पता लगाया गया है कि लगभग 1.2 मिलियन (12 लाख)  प्रजातियां ही इस धरती पर रहती है और ये प्रजातिया दिन ब दिन विलुप्त होती जा रही है। अगर ऐसा है तो बाकी 72 लाख प्रजातिया कहां गयी?

अगर 8.4 मिलियन प्रजातियां जिसे 84 लाख यॊनी भी कहा जाता है वह सत्य है तो यह भी सत्य है कि इस ब्रहांड में हम अकेले नहीं है। ऋग्वेद में जिस 84 लाख यॊनी का उल्लेख है वह यह नहीं कहता कि आप का जन्म इन सभी 84 लाख यॊनियों में होगा।

84 लाख धरतियां

वास्तव में 84 लाख यॊनी का अर्थ 84 लाख धरतियां हो सकती है। कॊटी सूर्य के इर्द गिर्द घूमने वाली एक करॊड़ पृथ्वी भी हो सकती है। ब्रह्मांड का आकार और उसकी सीमा हमारे कल्पना से भी अधिक विशाल है। ब्रह्मांड के सामने हम बौने हैं। तकनीक कितना भी आधुनिक हुआ हो लेकिन अब तक हम अपने आकाशगंगा से बाहर नहीं जा सके हैं फिर अनंत ब्रह्मांड में क्या हो रहा है कैसे जाने?

योगवसिष्ठ

समानांतर ब्रह्मांड और कहें तो पृथ्वियों के बारे में हमें सनातन धर्म शास्त्र योगवसिष्ठ में भी मिलता है, उसमें माता सरस्वती माया नाम की रानी को एक ही जगह पर सुक्ष्म रूप से कई ब्रह्मांणों को दिखाती हैं जिसमें वह रानी अपने पती को हर ब्रह्मांड की हर पृथ्वी पर अलग अलग रूप से देखती है। जब मैंने पहली बार इस ग्रंथ को पढ़ा तो तभी से मेरे मन में इसके प्रति कई विचार पनपने लगे कि ये कैसे हो सकता है, पर वास्तविकता तो यही है कि ये हो सकता है, आधुनिक विज्ञान भले ही इसे साबित ना कर सके पर आईंस्टीन जैसे वैज्ञानिक भी इसे मानते थे और इससे प्रभावित थे।

– क्या आज का विज्ञान इतना सक्षम है कि वह भगवान को खोज सके?

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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