Poems

“अजब सी ये हसरत” – कविता

 

एक हसरत अजब सी ना जाने वो क्यूँ थी ,

मगर तोड़ा उसने कई बार हमको ,

टूटते – टूटते भी निकल हम ना पाए ,

कैसे बताएं सच्चाई ये सबको I

 

बात उसकी करें तो वो हसरत कुछ यूँ थी

 

 

अगर एक रिश्ता , है हमारा किसी से ,

फिर चाहे वो गहरा या कच्चा किसी से ,

हमने चाहा कशिश वो रहे सिर्फ हमतक ,

मगर हो ना पाया कभी ये किसी से I

 

 

जानते थे ये हम भी , ये हसरत गलत है ,

मानते थे ये फिर भी की ये होगा कभी तो ,

थे गलत हम यहाँ भी जो समझे नही थे  ,

की होगा ना मुमकिन शायद ये कभी तो I

 

 

वक़्त ने दी थी हसरत , वक़्त ने ही सिखाया ,

नहीं होता पूरा हमेशा ही सब कुछ ,

दायरा हसरतों का तो होता नही है ,

हो अगर दायरा तो है मिलता बहुत कुछ I

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Balram Kumar Ray

बलराम कुमार राय विज्ञानम् के गैजेट्स केटेगरी के लेखक हैं. इन्हें टेक्नोलॉजी , गैजेट्स, और Apps पर लिखने में बहुत रूचि है।

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