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आखिर किस वजह से लोगों की आँखें नीली हो जाती हैं ?- जानें इसकी वैज्ञानिक वजह

ऑंखें हमारे जीवन का दूसरा नाम कही जाएं तो गलत नहीं होगा क्योंकि इनके बिना शायद इस दुनिया को देखना और महसूस करना नामुमकिन ही होगा | आँखें हमारे शरीर का वो महत्त्वपूर्ण अंग  हैं जिनके बिना तो हम अपना शरीर भी नहीं देख सकते | इश्वर की बनाई हुई ये प्रकृति  इन आँखों के बिना अधूरी ही है | हम जिस भी चीज की इच्छा करते हैं वो सबसे पहले इन आँखों द्वारा ही पसंद की जाती है| मानव शरीर की ये ऐसी इद्रियाँ हैं जिनके बिना बाकी इन्द्रियों को रस और स्वाद शायद मिल ही न पाए |

दोस्तों हमें इन संसार में अलग – अलग आकार और रंग की आँखों वाले इंसान मिल जाते हैं  | न जाने हमने अपने इस जीवन कितने ही तरह – तरह के लोग देखे होंगे पर हमारा शायद ही इस बात पर कभी ध्यान गया होगा कि आखिर किस वजह से लोग एक दूसरे से इतने अलग होते हैं और बात हो आँखों की तो इसके पीछे की वजह जानना हमारे लिए बहुत जरुरी भी है | विज्ञान से भरी हुई इस दुनिया में हमें इस बात पर ध्यान अवश्य डालना चाहिए कि क्या वजह होती हैं आखिर मनुष्यों के अंगों में अंतर की |

आँखों का विज्ञान कोई सरल विज्ञान नहीं है क्योंकि इसके पीछे कोई साधारण कारण और तथ्य देना इतना आसान नहीं होता | अगर हम बात करें कि आखिर लोगों की आँखों के रंग में इतना फर्क क्यों होता है तो इसके पीछे हम ये भी नहीं कह सकते कि उनको अपने पूर्वजों के कारण ये सब मिला है क्योंकि दोस्तों वैज्ञानिक दृष्टि से माता – पिता के रंग से एक दम अलग रंग की आँखों का होना लाजमी है |

हालांकि दोस्तों इनमें भी वंशाणुओं का होना जायज है पर इनका असर और प्रक्रिया बाकी अलग तरह के वन्शाणुओं से एक एकदम अलग है | सबसे पहले तो इस बारे में जान लेना चाहिये कि आखिर इंसानों की आँखों को रंग कैसे मिलता है और उनके रंग में अंतर आता कैसे है ?

दोस्तों आँखों के एक हिस्से जिसे “आइरिस” कहते हैं वजह होती है हमारे आँखों के रंग के लिए | दरसल दोस्तों इसी आइरिस में मौजूद एक द्रव्य होता है जिसे “मेलेनिन” कहते हैं और वही द्रव्य हमारी आँखों को रंग देता है और इसके अलावा वही मेलेनिन हमारी खाल और बाल के रंग के लिए भी जिम्मेदार है | दोस्तों इस मेलेनिन की अलग – अलग मात्रा की वजह से हमारे शरीर के अंगों में भी अलग – अलग रंग हो जाता है |

दोस्तों ये मेलेनिन नाम का द्रव्य कई तरह के वंशाणुओं पर निर्भर रहता है जो इसकी मात्रा को कम – ज्यादा करते रहते हैं और इसकी प्रक्रिया में भी फर्क डालते हैं | दोस्तों ये तो हम सभी जानते ही हैं कि इंसान के शरीर में 23 जोड़े हैं क्रोमोसोम्स के जो किसी भी इंसान के सैल में मौजूद होते हैं | वैज्ञानिकों की मानें तो 16 तरह – तरह के क्रोमोसोम्स हमारी आँखों के रंग के लिए जिम्मेदार होते हैं | उन्हीं 16 में से 2 सबसे ख़ास वन्शाणु ऐसे होते हैं जो सीधा मेलेनिन की मात्रा पर असर डालते हैं | दोस्तों इन 2 वन्शाणुओं को OCA2 और HERC2 कहा जाता है जो हमारे आँखों के रंग में सबसे ज्यादा फर्क डालते हैं |

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर OCA2 की वजह से मेलेनिन की मात्रा अगर ज्यादा है तो इंसानों की आँखों का रंग गहरा यानि भूरा या कला हो सकता है | वहीँ अगर इनकी वजह से मेलेनिन की मात्रा अगर बहुत कम है तो इंसानों की आखों का रंग सबसे हल्का यानि नीला , ग्रे  या फिर हरा भी हो सकता है |

दोस्तों आखों के इन तरह – तरह के रंगों का मौजूद होना सच में काफी जटिल है और सबसे सटीक जानकारी दे पाना बहराल मुश्किल सा ही है | इसके अलावा दृष्टि और रोशनी वज्ञान के कुछ सिद्धांतों पर भी इन आँखों का नीला होना निर्भर करता है |

 

 

Shubham

शुभम विज्ञानम के लेखक हैं, जिन्हें विज्ञान, गैजेट्स, रहस्य और पौराणिक विषयों में रूचि है। इसके अलावा ये पढ़ाई करते हैं।

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