Religion

महाभारत के अनुसार इस तरह हुई थी भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियों की मृत्यु

The death mystery of Krishna Wives

The death mystery of Krishna Wives – पिछले लेख में हमने आपको मौसूल युद्ध के बारे में बताया था जिसमें किस तरह भगवान कृष्ण के वंश का नाश हुआ था। अब हम आपको इसी कड़ी में बतायेंगे कि भगवान कृष्ण की पत्नियों की मृत्यु कैसे हुई थी।

मौसुल युद्ध के कारण जब श्रीकृष्ण के कुल के अधिकांश लोग मारे गए तो श्रीकृष्ण ने प्रभाष क्षेत्र में एक वृक्ष के नीचे विश्राम किया। वहीं पर उनको एक भील ने भूलवश तीर मार दिया, जो कि उनके पैरों में जाकर लगा। इसी को बहाना बनाकर श्रीकृष्ण ने देह को त्याग दिया। बलराम भी समुद्र में जाकर समाधि ले लेते हैं।

जब अर्जुन पहुँचे द्वारका

जब अर्जुन के पास यह समाचार पहुंचता है तो वे द्वारिका पहुंचते हैं। उनके द्वारिका पहुंचने पर भगवान श्रीकृष्ण की सभी पत्नियों सहित कई यदुवंशी महिलाएं बिलख-बिलखकर रोने लगती हैं। पति और पुत्रों से हीन हुईं इन स्त्रियों के आर्तनाद को सुनकर अर्जुन भी रोने लगते हैं। उनसे उन स्त्रियों की ओर देखा नहीं जाता है। उनकी आंखों से लगातार अश्रुधारा बहने लगती है। यदुवंश की सभी स्त्रियां अर्जुन को घेरकर इस आस में बैठ जाती हैं कि अब हमारे बारे में कोई तो निर्णय लेने वाला आया। पुरुषों में यदि कोई बचा था तो कृष्‍ण के प्रपौत्र वज्रनाभ और भगवान श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव ही। कुछ स्त्रियां गर्भवती थीं।

द्वारिका नगरी को समुद्र डुबो देगा

श्रीकृष्ण की पत्नियों से मिलने के बाद अर्जुन अपने मामा वसुदेव से मिलने बड़ी हिम्मत करके उनके महल जाते हैं। श्रीकृष्‍ण के पिता वसुदेव अर्जुन को देखते ही रोने लगते हैं और उन्हें अपने गले लगा लेते हैं। कुछ समय बाद वे अर्जुन को यदुओं की आपसी लड़ाई का सारा किस्सा सुनाते हैं और बाद में श्रीकृष्ण एवं बलराम के परमधाम चले जाने के बारे में कहते हैं। वसुदेव यह भी कहते हैं कि श्रीकृष्ण कह गए थे कि तुम (अर्जुन) आओगे और तुम ही अब इन स्त्रियों के बारे में निर्णय लोगे। तुम्हारे यहां से चले जाने के बाद इस द्वारिका नगरी को समुद्र डुबो देगा। कुछ समय रुककर वसुदेव कहते हैं कि मेरा भी अंतिम समय आ गया है और तुम ही मेरा अंतिम संस्कार करोगे।

वसुदेव की मृत्यु

अर्जुन वसुदेव की बात सुनकर मन ही मन बहुत दुखी होते हैं। तब वे वृष्णिवंश के सभी मंत्रियों से मिलते हैं और वे इस वंश के सभी स्त्री, बालक और बूढ़ों को यहां से इन्द्रप्रस्थ ले जाने के लिए इंतजाम करने का कहते हैं। उस दिन अर्जुन रात को द्वारिका में ही रुकते हैं। सुबह समाचार मिलता है कि वसुदेव ने अपनी देह छोड़ दी। यह समाचार सुनकर द्वारिका में फिर से महिलाएं रोने-बिलखने लगती हैं।

तब अर्जुन अपने मामा वसुदेव के अंतिम संस्कार की तैयारी कर उन्हें नगर से दूर एक स्थान ले जाते हैं। उस समय हजारों की संख्या में द्वारिकावासी भी उनके साथ होते हैं। पीछे-पीछे वसुदेव की पत्नियां भी चल रही थीं। उनकी 4 पत्नियां थीं। देवकी, भद्रा, रोहिणी और मदिरा। जब चिता में आग लगा दी गई तो वे सभी पत्नियां भी उस चिता पर जा बैठीं। यह भयानक दृश्य देख अर्जुन का दिल फट जाता है।

समुद्र में डूबी द्वारका

इसके बाद अर्जुन उस स्थान पर गए, जहां यदुवंशी आपस में लड़कर मारे गए थे। वहां कई संख्या में वीरों के शव पड़े थे। अर्जुन ने सभी का अंत्येष्टि कर्म किया और 7वें दिन प्रेतविधि कर्म करके अर्जुन सभी द्वारिकावासियों के साथ वहां से निकल पड़े। उनके साथ ऊंट, घोड़े, खच्चर, बैल, रथ आदि पर सवार द्वारिकावासियों के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की आठों पत्नियां भी थीं। साथ में श्रीकृष्ण का प्रपौत्र वज्रनाभ भी था।

Source – adelantelafe.com

कहते हैं कि यह लाखों लोगों का लश्कर था। अर्जुन के द्वारिका से निकलते ही नगरी समुद्र में डूब जाती है। इस अद्भुत दृश्य को द्वारिकावासी अपनी आंखों से देखकर आश्‍चर्यचकित हो जाते हैं। उस समय वे सभी बस यही सोचते हैं कि देव की लीला अद्भुत है। यह समुद्र तब तक रुका था, जब तक कि हम सभी द्वारिका के बाहर नहीं निकल जाते।

साधारण लूटेरों से हारे अर्जुन

रास्ते में भयानक जंगल आदि को पार करते हुए वे पंचनद देश में पड़ाव डालते हैं। वहां रहने वाले लुटेरों को जब यह खबर मिलती है कि अर्जुन अकेले ही इ‍तने बड़े जनसमुदाय को लेकर इन्द्रप्रस्थ जा रहे हैं, तो वे धन के लालच में वहां धावा बोल देते हैं। अर्जुन चीखकर लुटेरों को चेतावनी देते हैं, लेकिन लुटेरों पर उनकी चीख का कोई असर नहीं होता है और वे लूट-पाट करने लगते हैं। वे सिर्फ स्वर्ण आदि ही नहीं लूटते हैं बल्कि सुंदर और जवान महिलाओं को भी लूटते हैं। चारों ओर हाहाकार मच जाता है।

ऐसे में अर्जुन अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने के लिए स्मरण करते हैं लेकिन उनकी स्मरण शक्ति लुप्त हो जाती है। कुछ ही देर में उनके तरकश के सभी बाण भी समाप्त हो जाते हैं। तब अर्जुन बिना शस्त्र से ही लुटेरों से युद्ध करने लगते हैं लेकिन देखते ही देखते लुटेरे बहुत-सा धन और स्त्रियों को लेकर भाग जाते हैं। खुद को असहाय पाकर अर्जुन को बहुत दुख होता है। वे समझ नहीं पाते हैं कि क्यों और कैसे मेरी अस्त्र विद्या लुप्त हो गई?

श्रीकृष्‍ण की पत्नियों का अग्नि में प्रवेश

जैसे-तैसे अर्जुन यदुवंश की बची हुईं स्त्रियों व बच्चों को लेकर इन्द्रप्रस्थ पहुंचते हैं। यहां आकर अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्र को इन्द्रप्रस्थ का राजा बना देते हैं। बूढ़ों, बालकों व अन्य स्त्रियों को अर्जुन इन्द्रप्रस्थ में रहने के लिए कहते हैं। इसके बाद वज्र के बहुत रोकने पर भी अक्रूरजी की स्त्रियां वन में तपस्या करने के लिए चली जाती हैं। भगवान श्रीकृष्‍ण की 8 पत्नियां थीं जिसमें से रुक्मिणी और जाम्बवंती अग्नि में प्रवेश कर जाती हैं। सत्यभामा तथा अन्य देवियां तपस्या का निश्चय करके वन में चली जाती हैं। गांधारी, शैब्या, हैमवती आदि का अग्नि में प्रवेश करने का उल्लेख मिलता है। श्रीकृष्ण की पत्नियां- सत्यभामा, जाम्बवंती, रुक्मिणी, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा थीं।

भगवान कृष्ण के वंश के बचे हुए एकमात्र यदुवंशी और उनके प्रपौत्र (पोते का पुत्र) वज्र को इन्द्रप्रस्थ का राजा बनाने के बाद अर्जुन महर्षि वेदव्यास के आश्रम पहुंचते हैं। यहां आकर अर्जुन ने महर्षि वेदव्यास को बताया कि श्रीकृष्ण, बलराम सहित सारे यदुवंशी कैसे और किस तरह समाप्त हो चुके हैं। तब महर्षि ने कहा कि यह सब इसी प्रकार होना था इसलिए इसके लिए शोक नहीं करना चाहिए। अर्जुन यह भी बताते हैं कि किस प्रकार साधारण लुटेरे उनके सामने यदुवंश की स्त्रियों का हरण करके ले गए और वे कुछ भी न कर पाए। इसके बाद किस तरह श्रीकृष्ण की पत्नियों ने अग्नि में कूदकर जान दे दी और कुछ तपस्या करने वन चली गईं।

संदर्भ – महाभारत कथा।। मौसुल पर्व।।

साभार – बेवदुनिया

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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