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एक ऐसा राग जिसे गाकर साक्षात प्रकट हो जाता है सर्प, जानें इसका रहस्य

Sarp Raag – गीत-संगीत में राग का बहुत महत्व होता है, राग ही सुरों को बांध कर एक ऐसा नाद प्रकट करता है जिससे मन और चित्त को शांति मिलती है। राग का एक विज्ञान है जिसके कारण देखा गया है कि राग अगर एकदम सही तरह से गाया जाये तो उस राग के संबंधित सभी कार्य होने लगते हैं।

अकबर के काल में तानसेन का जिक्र आता है जो राग को गाकर वर्षा प्रकट कर सकते थे। ये भारतीय प्राचीन विद्या है जो साक्षात भगवती सरस्वती के द्वारा निर्मित की गई है। आज हम सर्प राग के बारे में बतायेंगे कि जिसे एकबार गाकर के साक्षात सर्प यानिं सांप की आकृति प्रकट हो गई थी।

सुप्रसिद्ध अंग्रेज गायिका श्रीमती वाट्सन हग्स एक बार अपने दरवाजे पर बैठी एक राग गा रही थीं | जब जब वे राग गाते गाते तन्द्रित अवस्था (निमग्नता) की स्थिति अनुभव करतीं उन्हें उसी तन्द्रा-वस्था में एक सर्प की आकृति प्रगट होती दिखाई देती। वे समझ न पाती थीं कि वास्तव में वहाँ कोई सर्प आ जाता है अथवा वो केवल एक काल्पनिक अनुभूति भर है।

इसकी परीक्षा के लिये उन्होंने उस स्थान में बहुत बारीक कणों वाली रेत बिछा दी और फिर से वही राग गाने लगीं। राग गाते उन्हें फिर वैसी ही अनुभूति हुई अब उन्होंने राग बन्द किया और रेत के निकट जाकर देखा तो उसमें एक सर्प की आकृति सचमुच बनी हुई थी। इस आर्श्चय ने उन्हें विविध प्रकार के राग सीखने और उनका विकास करने के प्रेरणा दी। राग में यद्यपि स्वर का आनन्द नहीं मिलता तथापि उसमें भावनाओं को दिशा- विशेष में निक्षेपित करने की प्रबल शक्ति होती है।

– संगीत में होती है जबरदस्त ताकत, इस तरह करती है काम

– संगीत के साथ किसी कार्य को सीखना आपके मस्तिष्क की संरचना बदल सकता है

उससे रस मिलता है। यह भाव तरंगें सूक्ष्म आकाश के परमाणुओं में उपस्थित विद्युत में कम्पन उत्पन्न करती हैं यह कम्पन अपनी अपनी तरह से परिणाम उपस्थित कर सकते हैं प्राचीन काल में सिद्ध गायक मल्हार राग गाते थे तो वर्षा होने लगती थी, दीपक राग गाने से बुझे हुये दीपक जल उठते थे, मृग रंजनी गाने से जंगल के हिरण और मृग जीवन की मृत्यु का भय त्यागकर विमोहित हुये चले आते थे।

संगीत स्वरों से आबद्ध सृष्टि अन्तराल में जबर्दस्त क्रान्ति उत्पन्न करने की एक महान् उपलब्धि भारतीय आचार्यों ने प्राप्त की थी। श्रीमती वाट्सन हग्स का यह छोटा सा प्रयोग उस उपलब्धि की एक क्षीण झाँकी मात्र कही जा सकती है।

Source – Rahasyamaya

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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