Facts & Mystery

दिल्ली का ये लौह स्तंभ दे रहा है वैज्ञानिकों को चुनौती, 2 हजार साल से नहीं लगा है जंग

Iron Pillar of Delhi Hindi

Mystery of Iron Pillar of Delhi Hindi – अगर रहस्यों की बात की जाये तो भारत का नाम सबसे पहले आता है। हमारे देश में हर प्राचीन वस्तु में कोई ना कोई रहस्य छिपा ही होता है। ऐसा ही एक रहस्य हमें भारत की राजधानी दिल्ली में देखने को मिलता है। दरअसल यहां पर एक लौह स्तंभ है जो आज भी अपनी उच्च तकनीक से दुनिया के कई वैज्ञानिकों को चुनौती दे रहा है।

सात मीटर ऊँचा लौह स्तंभ

दिल्ली के महरौली नामक स्थान पर एक ऐसा लोहे का स्तम्भ है जिसका रहस्य आज तक वैज्ञानिक नहीं समझ सके हैं | लगभग सात मीटर ऊँचे इस लौह-स्तम्भ में संस्कृत में कुछ लिखा है जिसके अनुसार इसे ध्वज-स्तम्भ के रूप में खड़ा किया गया था | मथुरा में, राजा चन्द्र द्वारा निर्मित विष्णु-मंदिर के सामने इसे ध्वज-स्तम्भ के रूप में खड़ा किया गया था फिर इस पर गरुड़ स्थापित किया गया था इसलिए इसे गरुड़-स्तम्भ भी कहीं-कहीं कहा जाता है।

महाराजा विक्रमादित्य द्वारा निर्माण

बाद में सन 1050 में, आधुनिक दिल्ली के संस्थापक महाराज अनंगपाल द्वारा इसे दिल्ली लाया गया | लेकिन अधिकतर इतिहास के विद्वान इसके निर्माणकर्ता, हिन्दू सम्राट ‘महाराजा विक्रमादित्य’ को मानते हैं | “चन्द्र” नाम भी महाराजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की ओर ही संकेत करता है | लगभग साढ़े चार फीट के औसतन व्यास वाले इस लौह-स्तम्भ का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने, दो हज़ार वर्ष से भी पहले जब , शक और कुषाण जाति के विदेशी आक्रान्ताओं को भारत भूमि से बाहर खदेड़ दिया था तो उन पर हुई इस महान विजय की स्मृति के रूप में उन्होंने इस स्तम्भ का निर्माण करवाया था इसलिए इसे विजय स्तम्भ भी कहा जाता है।

– ऐसा राजा जिसे इतिहास ने भूला दिया, बनाया था भारत को सोने की चिड़िया

IIT कानपुर के विशेषज्ञ की रिसर्च

लगभग 98 प्रतिशत शुद्ध इस्पात से बने हुए इस लौह स्तम्भ को देख कर ही ये अंदाज़ा लग जाता है कि इसको बनाने वाले कितने कुशल धातुकर्मा होंगे | लेकिन लौह धातु के बने इस स्तम्भ के प्रसिद्ध होने की वजह कुछ और है | हजारों सालों से ये लौह स्तम्भ वर्षा और वायु का सामना कर रहा है लेकिन आज तक इसमें जंग नहीं लगा है | कई धातु-विज्ञानियों ने इस पर शोध किया और इसके जंग न लगने के पीछे अपने तर्क दिए जिसमे IIT कानपुर के विशेषज्ञ बालासुब्रमानियम और उनकी टीम का शोध प्रमुख है।

संस्कृत में लिखा है कुछ

 

उन्होंने इस स्तम्भ का निरिक्षण किया, इस पर शोध किये और अपना मत दिया | उनके मतानुसार इस स्तम्भ को जंग से या किसी भी अन्य प्रकार के ‘धातु-विष’ से बचाने के लिए इसके ऊपर मिसाविट (Misawit) नाम के रसायन की एक पतली सी पर्त चढ़ाई गयी थी जो लौह तत्व, ऑक्सीजन (Oxygen) और हाइड्रोजन(Hydrogen) के मिश्रण से बनाई गयी थी | जिससे इसमें आज तक जंग नहीं लगा | इसी से मिलती जुलती प्रक्रिया आज कल नाभिकीय रिएक्टर( Nuclear Reactor)  में रेडियो एक्टिव पदार्थो की सुरक्षा के लिए प्रयोग की जाती है।

#Best Books To Read (इन किताबों को जरूर पढ़े)

  

अद्भुत मिश्रिण

इस सुरक्षा पर्त को बनाने में जिस उच्च तकनीकि का इस्तेमाल हुआ था उसमे फास्फोरस(Phosphorous)  की मात्रा लोहे की तुलना में एक प्रतिशत थी, आजकल यह अनुपात आधे प्रतिशत तक भी नहीं होता | लोहे के साथ फास्फोरस की अधिक मात्रा में सटीक आनुपातिक प्रयोग, प्राचीन भारत के उच्च धातु विज्ञान एवं तकनीकि का प्रमाण दे रहा है जिससे आज के आधुनिक वैज्ञानिक चकित है | यद्यपि बालासुब्रमानियम और उनकी टीम व कुछ और विशेषज्ञ इस पर शोध कर रहे है, भविष्य में कुछ और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं |

प्राचीन नगर मिहिरावली

आज जो स्थान महरौली नाम से जाना जाता है वो कभी “मिहिरावली” था | इसी भव्य मिहिरावली को महाराजा विक्रमादित्य ने, अपने नवरत्नों में से एक ‘वराहमिहिर’ के अन्तरिक्ष और ब्रह्माण्ड सम्बन्धी शोध के लिए एक ‘वेधशाला’ के रूप में बनवाया और बसाया था | इस स्थान के सत्ताईस खंड थे जो सत्ताईस नक्षत्रों के आधार पर बनवाए गए थे |

वामपंथी झूठा इतिहास

प्राचीन भारत के गौरवमयी इतिहास के ऐसे कई विशिष्ट खंड हैं जिनको जानने पर आपको गर्व होगा और साथ ही उन तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवियों (जो वास्तव में पाखंडी और दोहरे मापदंड वाले हैं) पर क्रोध भी आएगा कि उन्होंने भारत वर्ष का नकारात्मक इतिहास लिखा और सच को हमसे छिपाते हुए झूठ का प्रचार किया जैसे – वेदों में गौमांस खाने का उल्लेख, आर्य बाहर से आये थे भारतवर्ष में और उन्होंने यहाँ के मूल निवासी द्रविड़ों को परास्त करके भारतवर्ष पर अधिकार किया, तथा मनुस्मृति के स्त्री विरोधी होने का दुष्प्रचार आदि कुछ ऐसे दुष्कृत्य हैं जिनके लिए ना तो इतिहास उन्हें कभी क्षमा करेगा और ना ही आने वाली पीढ़ियाँ |

– जानें, प्राचीन काल में भारत कितना विशाल था, कहां तक हमारी संस्कृति थी

लेकिन विध्वंस की कालिमा से युक्त निराशा और नकारात्मकता की कालरात्रि अब अस्त होने को है और सृजन का सूर्य अपनी सहस्त्रो रश्मियों के साथ उदित होने को है | उस सुनहले सूर्य की किरणों की आहट उन्हें होने लगी है जो दुनिया से थोड़ा पहले जागते हैं……भोर वेला में !

साभार – रहस्यमय.कॅाम

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

Related Articles

Back to top button