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भारत की जेलों में कैसा खाना मिलता है?

Food In The Indian Prison – ज्यादातर लोगो  को वही सच लगता है जो की फ़िल्मी दुनिया में दिखाया जाता है ,फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है एक थाली में 2 सूखी रोटी थोड़ी सब्ज़ी और एक अल्युमिनम मग में पानी ही उन कैदियों को नसीब है जो जेल में बंद है।

पर असल मे कैदियों को कैसा खाना मिलता है? यह हर राज्यों पर निर्भर करता है की वहाँ की सरकारें कितना खर्च करना चाहती है। भारत मे जेलों के संचालन का अधिकार राज्यों के पास है।

NCRB

2015 के NCRB (National Crimes Record Bureau) के आंकड़ों के मुताबिक़ राज्य सरकारें औसतन प्रति कैदी 52.42 रुपये ख़र्च करती है। इसमें तीन समय का खाना उन्हें मुहैया कराया जाता है। नागालैंड और जम्मू कश्मीर की सरकार अपने कैदियों पर सबसे ज्यादा खर्च करती है वहीं दिल्ली, गोआ, महाराष्ट्र की सरकारें सबसे कम यहाँ तक कि औसत से भी कम खर्च करती है। शायद इसलिए दिल्ली का तिहाड़ जेल कुख्यात है।

Model Prison Manual

गृहमंत्रालय द्वारा Model Prison Manual में यह दिशानिर्देश दिए गए हैं कि पुरुष कैदी को 2320 कैलोरी और महिलाओं को 1900 कैलोरी प्रतिदिन ऊर्जा मिलनी चाहिए।

पर असल मे जो प्लेट पर मिलता है उसकी स्थिति दयनीय ही है। पतली दाल, 6 रोटियां, साधारण सा चावल भी मिलता है। कई कैदी खाना बांट कर खाते है। खाना सीमित ही मिलता है। कुछ कैदी बाहर से भी खाना ले सकते है पर कोर्ट से विशेष अनुमति लेनी होती है। 850 ग्राम से ज्यादा खाना नही लिया जा सकता।

NCRB की रिपोर्ट यह भी कहती है कि उन महिला के बच्चो को भी दुरुस्त खाना दिया जाता है वो छोटे है और उन्हें माँ की जरूरत है। लोग जेल की मुश्किल जिंदगी में शायद सबसे ज़्यादा खाने के आभाव से डरते है।

इसका विकल्प भी अब कुछ जेलों में निकाला जा रहा है। कई जेलों में कैंटीन होती है जहाँ से खाना खरीदा जा सकता है। हर कैदी को प्रतिमाह 2000 रुपये तह अपने परिवार से प्राप्त करने की अनुमति होती है और जेल में उन्हें काम के बदले भी पैसे मिलते है जिससे वो कैंटीन में खाना खरीद कर खा पाते है।

जेल में भले ही के सुविधा हो अथवा असुविधा जो ये शायद वो जगह है जहाँ आम इंसान कभी नहीं रहना चाहेगा।

– ये हैं इतिहास की कुछ सबसे दर्दनाक जेलें

सबसे बड़ा उधाहरण तिहार जेल का ही ले लीजिये

एशिया की सबसे बड़ी और सबसे भीड़भाड़ वाली जेल में कैदियों के लिए तीन वर्ग भोजन देना किसी भी तरह से आसान काम नहीं है। 15,000 से अधिक कैदियों ने तिहाड़ को घर बुलाया और सीमित संसाधनों के साथ काम करने के लिए, रसोई के कर्मचारियों को अपने पैर की उंगलियों पर रहना पड़ा। तिहाड़ में 10 जेल परिसर हैं और यह अनिवार्य है कि भोजन समय पर तैयार किया जाए। इन परिसरों में से एक के लिए लंच और डिनर तैयार करने में लगभग 4 घंटे लगते हैं।

यही कारण है कि कर्मचारी हमेशा एक घड़ी पर होता है। नाश्ते के लिए तैयारी सुबह 5 बजे शुरू होती है। दिल्ली की गर्मियों में, यह बहुत अधिक समय लेती है, क्योंकि रसोईघर असहनीय रूप से गर्म हो जाता है और कैदियों को यह सुनिश्चित करने के लिए ब्रेक लेना पड़ता है कि वे जा सकते हैं।

अधिकांश दिनों में, कैदियों के लिए मेनू में रोटी, दाल, सब्ज़ी और पेठा जैसे स्टेपल होते हैं। उन्हें सप्ताह में दो बार खीर भी दी जाती है। कैदियों को मुफ्त में मांसाहारी भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है। लेकिन वे कैंटीन से मांसाहारी भोजन खरीदने के लिए परिवार से प्राप्त भत्ते का उपयोग कर सकते हैं। ये भत्ते 1,500 से 2,200 रुपये तक हैं।

वास्तव में, कैदियों को मुफ्त मांसाहारी भोजन उपलब्ध कराने वाले एकमात्र राज्य पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्य, पश्चिम बंगाल और जम्मू और कश्मीर हैं। हालाँकि, ये सभी मेनू गृह मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए मॉडल जेल मैनुअल के आधार पर तय किए जाते हैं। यह पुरुष कैदियों के लिए प्रति दिन 2,320 किलो कैलोरी और 2,730 किलो कैलोरी, और महिला कैदियों के लिए 1,900 किलो कैलोरी से 2,830 किलो कैलोरी के बीच निर्धारित करता है। लेकिन राज्य स्वयं अपने जेल मेनू में बारीकियों का चयन कर सकते हैं।

साभार – क्योरा

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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