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जानें भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ का रहस्य, ये कौन था और कहां रहता था

हिन्दू धर्म शास्त्रो में भगवान विष्णु की सवारी को गरुड़ (Garuda)  के रूप में दिखाया जाता है, भगवान विष्णु का ये वाहन माना जाता है। जहां भी भगवान विष्णु जाते हैं और प्रकट होते हैं तो इस विशाल पक्षी पर बैठकर ही यात्रा करते हैं। भगवान गरुड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है। गरुड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है।

गरुड़ के नाम से एक पुराण, ध्वज, घंटी और एक व्रत भी है। महाभारत में गरूड़ ध्वज था। घर में रखे मंदिर में गरुड़ घंटी और मंदिर के शिखर पर गरुड़ ध्वज होता है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। हिन्दू धर्मानुसार जब किसी के घर में किसी की मौत हो जाती है तो गरूड़ पुराण का पाठ रखा जाता है।

गरुड़ पक्षी की विशेषता ही है कि वह भारत का धार्मिक और अमेरिका का राष्ट्रीय पक्षी भी है। बड़े- बड़े राजा महाराजा भी अपना प्रतीक चिन्ह गरुड़ ही रखा करते थे। गरुड़ इंडोनेशिया, थाईलैंड और मंगोलिया आदि में भी सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में लोकप्रिय है। इंडोनेसिया का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है।

विशालकाय पक्षी :

माना जाता है कि प्राचीनकाल में गरूड़ की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश और व्यक्तियों को इधर से उधर ले जाना होता था। कहते हैं कि यह इतना विशालकाय पक्षी होता था जो कि अपनी चोंच से हाथी को उठाकर उड़ जाता था। गरूढ़ जैसे ही दो पक्षी रामायण काल में भी थे जिन्हें जटायु और सम्पाती कहा जाता था। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते विचरण करते रहते थे।

गरूड़ का जन्म :

गरूड़ का जन्म सतयुग में हुआ था, लेकिन वे त्रेता और द्वापर में भी देखे गए थे। दक्ष प्रजापति की विनिता या विनता नामक कन्या का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ। विनिता ने प्रसव के दौरान दो अंडे दिए। एक से अरुण का और दूसरे से गरुढ़ का जन्म हुआ। अरुण तो सूर्य के रथ के सारथी बन गए तो गरुड़ ने भगवान विष्णु का वाहन होना स्वीकार किया। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।

चारो युगों में भगवान गरुड़ का वर्णन मिलता है, सतयुग में, त्रेता में द्वापर में भी भगवान गरुड़ का वर्णन है। कलियुग में अभभी फिलहाल कोई जिक्र नहीं है पर हो सकता है कि कभी किसी शास्त्र में लिखा हो पर उसे अभी तक समझा ना जा सका हो।

लुप्त हो रहा है गरूड़।

माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं।

– Garuda Puran – गरुड़ पुराण के अनुसार जानें किस चीज से क्या नष्ट हो जाता है?

राम के काल में सम्पाती और जटायु की बहुत ही चर्चा होती है। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर भी है।

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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