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चीन बनाएगा अपना खुद का ‘चाँद’ जो असली चाँद से 8 गुना रोशनी देगा

दोस्तों इस ब्रह्माण्ड की जितनी भी चीजे हैं वो सच में हमें कौतुहल से भर देती है और बात आये जब उनसे सम्बंधित विज्ञान की तो वो रहस्य लेकर ही हमारे सामने मौजूद हो जाता है | सूरज , चाँद , ग्रह आदि जैसे ब्रह्माण्ड के तत्व हमेशा हमारे शोध का विषय बने रहे हैं और आगे भी इनकी जानकारी लेने में हम और प्रयास करते रहेंगे |

ये सभी ब्रह्माण्ड के ग्रह आदि सब प्रकृति की ही देन है | पर सोचिये अगर विज्ञान का अगर ऐसा इस्तेमाल किया जाये कि इन सभी चीजों को इन्सान खुद के लिए बनाने लग जाये और प्रकृति को ही चुनौती देने की सोचे तो क्या होगा ?

पर दोस्तों इससे मिलता – झुलता ही एक काम करने जा रहा है चीन | और उसकी नजर है अब खुद के ही चाँद पर |

चीनी कंपनी ने घोषणा की है कि वो एक नक़ली चांद को चीन के आसमान पर भेजने की योजना बना रही है, जिससे रात में चीन का आसमान चांदनी रात से गुलज़ार रहेगा.

चीन के अख़बार पीपल्स डेली के अनुसार चेंगडु इलाक़े में स्थित एक निजी एयरोस्पेस संस्थान में अधिकारियों ने कहा कि वे साल 2020 तक पृथ्वी की कक्षा में एक चमकदार सैटेलाइट भेजने की योजना बना रहे हैं, जिससे स्ट्रीट लाइट लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.

इस ख़बर के सामने आते ही वैज्ञानिकों के बीच कौतुहल और संदेह दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं.

अभी तक इस योजना के बारे में बहुत अधिक जानकारियां सार्वजनिक नहीं हुई हैं और जितनी भी जानकारी सामने आई है उन पर भी कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं.

सबसे पहले पिछले हफ़्ते पीपल्स डेली ने इस ख़बर को प्रकाशित किया था. इसमें उन्होंने वु चेनफ़ेंग का बयान प्रकाशित किया था. वु चेनफ़ेंग चेंगडु एयरोस्पेस साइंस इंस्टिट्यूट माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सिस्टम रिसर्च इंस्टिट्यूट के चेयरमैन हैं.

वु ने कहा था कि इस योजना पर पिछले कुछ सालों से काम चल रहा है और अब यह अपने अंतिम चरण पर है. साल 2020 तक इस सैटेलाइट को भेजने की योजना है.

चाइना डेली अख़बार ने वु के हवाले से लिखा है कि साल 2022 तक चीन ऐसे तीन और सैटेलाइट भेज सकता है.

हालांकि किसी भी रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि क्या इस योजना के पीछे सरकारी हाथ है या नहीं.

चाइना डेली के अनुसार यह नकली चांद एक शीशे की तरह काम करेगा, जो सूर्य की रौशनी को प्रतिबिंबित कर धरती पर भेजेगा.

यह धरती से 500 किलोमीटर की धूरी पर स्थित होगा, लगभग इतनी ही दूरी पर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन भी स्थित है.

इसके मुक़ाबले धरती के असली चांद की दूरी तीन लाख 84 हज़ार किलोमीटर है.

रिपोर्टों में यह नहीं बताया गया है कि यह चांद दिखने में कैसा होगा, लेकिन वु के हवाले से इतना ज़रूर बताया गया है कि इस चांद की रौशनी 10 किलोमीटर से 80 किलोमीटर के बीच फैली होगी और यह असली चांद के मुक़ाबले 8 गुना अधिक रौशनी देगा.

वु के अनुसार इस नक़ली चांद की रौशनी को नियंत्रित भी किया जा सकेगा.

चेंगडु एयरोस्पेस के अधिकारियों की मानें तो इस नक़ली चांद का मक़सद पैसा बचाना है. जी हां, यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि जितना खर्च स्ट्रीट लाइट पर आता है उसकी तुलना में यह चांद सस्ता पड़ेगा.

चाइना डेली ने वु के हवाले से लिखा है कि नक़ली चांद से 50 वर्ग किलोमीटर के इलाक़े में रौशनी करने से हर साल बिजली में आने वाले खर्च में 1.2 अरब युआन यानी 17.3 करोड़ डॉलर बचाए जा सकते हैं.

इसके अलावा प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप या बाढ़ जैसे हालात में जब ब्लैक आउट हो जाता है, उस समय भी यह नक़ली चांद रौशनी दे सकता है.

ग्लास्गो यूनिवर्सिटी में स्पेस सिस्टम इंजीनियरिंग के प्रवक्ता डॉक्टर मैटियो सिरिओटी ने बीबीसी को बताया कि इस योजना को एक निवेश के तौर पर देखा जा रहा है.

उन्होंने कहा, ”रात के वक़्त बिजली पर बहुत अधिक खर्च होता है. ऐसे में अगर कोई चीज़ 15 सालों तक एकमुश्त खर्चे पर मुफ़्त बिजली देने लगे तो यह आने वाले वक़्त में काफ़ी सस्ता पड़ेगा.”

हार्बिन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के निदेशक कैंग वीमिन ने पीपल्स डेली से कहा है कि यह नक़ली चांद धुंधला सा दिखेगा और जानवरों के दैनिक कामों पर इसका असर नहीं पड़ेगा.

लेकिन चीन में सोशल मीडिया पर इस चांद के बारे में चर्चाएं और चिंताएं गरम हैं.

कुछ लोगों का कहना है कि इस चांद की वजह से रात को जागने वाले जानवरों पर असर पड़ेगा. वहीं कुछ लोग मानते हैं कि चीन में पहले से ही रौशनी से जुड़ा प्रदूषण है और इस चांद से इसमें वृद्धि होगी.

इंटरनेशनल डार्क स्काई असोसिएशन में पब्लिक पॉलिसी के निदेशक जॉन बैरेनटीन ने फॉर्ब्स को बताया, ”इस चांद की वजह से निश्चित तौर पर रात के वक़्त रौशनी बढ़ेगी जिस वजह से पहले से ही रौशनी से जुड़े प्रदूषण का सामना कर रहे चेंगडु वासियों को और तकलीफ़ होगी. यहां रहने वाले लोग पहले ही रात के वक़्त गैरज़रूरी रौशनी से परेशान हैं.”

डॉक्टर सिरिओटी ने बीबीसी से कहा कि अगर इस नक़ली चांद की रौशनी बहुत अधिक होगी तो इसका असर प्रकृति पर पड़ेगा और जानवर इसका शिकार बनेंगे.

वे कहते हैं, ”इसके उलट अगर इसकी रौशनी बहुत ज़्यादा नहीं होती है तो सवाल उठेगा कि आख़िर इसे लगाने की ज़रूरत ही क्या है”

साल 1993 में रूस के वैज्ञानिकों ने 20 मीटर चौड़ा एक रिफ़्लेक्टर मिर स्पेस स्टेशन की तरफ भेजा था, इस रिफ़्लेक्टर का ऑर्बिट 200 किलोमीटर से 420 किलोमीटर के बीच था.

नाम्या 2 नामक एक सैटेलाइट धरती के 5 किलोमीटर के व्यास पर रौशनी के लिए भेजा गया था. लेकिन यह सैटेलाइट जलकर ख़त्म हो गया था.

हालांकि दोस्तों चीन की बढ़ती हुई तरक्की और स्पेस टेक्नोलॉजी को ध्यान में रखा जाये तो ये काम अब शायद नामुमकिन नहीं लगता |

Shubham

शुभम विज्ञानम के लेखक हैं, जिन्हें विज्ञान, गैजेट्स, रहस्य और पौराणिक विषयों में रूचि है। इसके अलावा ये पढ़ाई करते हैं।

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