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अगर इन 2 चीजों से लगता है डर तो एगोराफोबिया के हैं लक्षण Agoraphobia in Hindi

Agoraphobia in Hindi

Agoraphobia in Hindi –  डर एक ऐसा छोटा शब्द है, जो है तो छोटा मगर मायने बड़े हैं। हमारी इस भावना को किताबो और फिल्मो में न जाने कितनी बार अलग-अलग रूपों दिखाया जा चूका है । हॉरर फिल्म देखकर डरना तो किसी के लिए भी स्वाभाविक है, लेकिन जब कोई इंसान सामाजिक माहौल से इतना डरने लगे कि हमेशा उसे अकेलापन ही पसंद आए तो यह एगोराफोबिया का लक्षण हो सकता है।

यह एक तरह का सोशल फोबिया है, जो तनाव और चिंता से जुडा है। एक सर्वे के अनुसार सिर्फ इंडिया में हर साल 1M यानि एक अरब cases सामने आते है जिसमे से जायदातर cases girls और महिलाओ के होते है यह समस्या किसी को भी हो सकती है, लेकिन 20 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों और स्त्रियों में इसके लक्षण ज्यादा देखने को मिलते हैं।

इसकी पहचान कैसे होती है

•    इस समस्या से पीडित व्यक्ति को अपने आसपास के वातावरण से जुडी किसी भी सामाजिक स्थिति का सामना करने में घबराहट हो सकती है। ऐसे लोगों आमतौर पर भीड भाड़ भरे जैसी जगह, जैसे शॉपिंग मॉल, पार्टी, सिनेमा हॉल या रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर जाते हुए घबराहट होती है।

•    ऐसे लोगों को छोटी दूरी की यात्रा करने में भी बहुत डर लगता है। ऐसी स्थितियों में आम लोगो को थोडी-बहुत घबराहट होना तो स्वाभाविक है, लेकिन इस समस्या से पीडित व्यक्ति ऐसी जगहों पर जाने से हमेशा बचता है। भीड़ वाली जगहों पर गला सूखना, दिल की धडकन और सांसों की गति बढना, ज्यादा पसीना निकलना और हाथ-पैर ठंडे पडना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।

•    यहां तक कि इस समस्या से ग्रस्त लोग घबराहट की वजह से भीड वाली जगहों पर बेहोश भी हो जाते हैं। यह समस्या कुछ हद तक सेपरेशन एंग्जायटी  से भी जुडी है। यानि कोई जादुई दर जैसे बचो को ये लगना की वो अपने माता पिता से बिछड़ जायगे

•     इसमें व्यक्ति करीबी लोगों या आसपास के वातावरण को ही अपना सुरक्षा कवच बना लेता है और किसी भी हाल में उससे बाहर निकलने को तैयार नहीं होता।

क्या है वजह

एक्सपर्ट की मानें तो अभी तक इस समस्या के कारणों के बारे में स्पष्ट रूप से पता नहीं लगाया जा सका है। फिर भी आत्मविश्वास की कमी, भीड से जुडा बचपन का कोई बुरा अनुभव और नकारात्मक विचार इस के लिए जिम्मेदार होते हैं।

Source – vittude.com

कई बार मस्तिष्क के न्यूरोट्रांस्मीटर की संरचना में बदलाव आने से भी लोगों को छोटी-छोटी बातों से घबराहट होने लगती है। आनुवंशिकता यानि Heredity की वजह से भी व्यक्ति को यह समस्या हो सकती है।

क्या है इसका इलाज

अगर सही समय पर उपचार कराया जाए तो यह समस्या आसानी से हल हो जाती है। इसमें दवाओं और काउंसलिंग के जरिये मरीज का उपचार किया जाता है। बिहेवियर थेरेपी के जरिये उसका आत्मविश्वास बढाने की कोशिश की जाती है। आमतौर पर छह माह से एक साल के भीतर व्यक्ति की मानसिक अवस्था सामान्य हो जाती है। ऐसी स्थिति में परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

अगर आपके परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई दे, जो सार्वजनिक स्थलों पर जाने से हमेशा कतराए या वहां जाने के बाद उसकी तबियत बिगड़ जाती हो तो उसके लिए किसी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। उपचार के दौरान परिवार के सदस्यों को मरीज का मनोबल बढाने की कोशिश करनी चाहिए।

साभार – सूरज सिंह

यह भी जानें – क्या आप इस तरह की चीजों को देखकर डरते हैं, तो जानिए क्या कहता है विज्ञान

Team Vigyanam

Vigyanam Team - विज्ञानम् टीम

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